________________
३०० ]
[ पट्टावली-पराग
सं० १२३४ फलोदी के विधिवत्य में पार्श्वनाथ को स्थापित किया मौर जिनमसे को उपाध्याय-पद और गुणश्री को महत्तरा पद दिया गया । सर्वदेवाचार्य मोर जयदेवी साध्वी को दीक्षा दी ।
सं० १२३५ अजमेर में चातुर्मास्य किया । श्री जिनदत्तसूरि का स्तूप फिर से विस्तार के साथ प्रतिष्ठित किया, देवप्रभ तथा उनकी मां चरणमति गणिनी को दीक्षा दी।
सं० १२३६, अजमेर में महावीर प्रतिमा की ओर अम्बिका के शिखर की प्रतिष्ठा की । सागरपाट में भी अम्बिका के शिखर की प्रतिष्ठा की ।
सं० १२३७, बम्बेरक में जिनरथ को वाचनाचार्य बनाया ।
सं० १२३८, आशिका में दो बड़ी मूर्तियां स्थापित की।
से
सं० १२३६, फलोदी में अनेक भक्तिमान् श्रावकों के साथ बहिर्भूमि जाते हुए श्री जिनभक्ताचार्य को देखकर ऊकेश - गच्छीय पद्मप्रभ नामक आचार्य जिनपतिसूरि को जीतने की भट्टों प्रशस्ति पढ़ाने लगा, इससे श्री पूज्य के भक्त श्रावकों ने पद्मप्रभ को बड़े कठोर शब्दों से फटकारा । बात बढ़ गई, एक दूसरे के सामने एक दूसरे के भक्त गृहस्थ बड़े बीभत्स शब्दों का प्रयोग करने लगे। बृहद् गुर्वावलीलेखक ने यह प्रकरण गुर्वावली में न लिखा होता तो अपने आचार्यों की बड़ी सेवा की मानी जाती ।
आचार्य पद्मप्रभ के साथ जिनपति के शास्त्रार्थ में उनके भक्त सेठ रामदेव ने अपने घर से १६ हजार पारुत्य द्रव्य खर्च किये थे ।
सं० १२४० में विक्रमपुर में श्रीपूज्य जिनपतिसूरि ने १४ साधुओं के साथ गणियोग का तप किया ।
सं० १२४१ में फलोदी में जिननाग, श्रजित, पद्मदेव, गरगदेव, यमचन्द्र तथा धर्मश्री श्रौर धर्मदेवी को दीक्षा दी ।
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org