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________________ तृतीय-परिच्छेद ] [ २८१ - - परिमाण "संवेग रंगशाला नामक ग्रन्थ बनाया, और जालोर में श्रावकों के आगे "चीइ वंदणमावस्सय” इत्यादि गाथा का व्याख्यान करते हुए जो सिद्धान्त के पाठ दिये थे वे उनके शिष्यों ने लिख दिये, जिससे ३०० श्लोक परिमाण का "दिनचर्या" ग्रन्थ बन गया। जिनचन्द्र भो वीरधर्म को यथार्थ रूप में प्रकाशित कर देवगति को प्राप्त हुए। (४) अभयदेवसूरि - अभयदेवसूरि के प्रबन्ध में लेखक ने शम्भानक (सम्भाण) गांव में उनके शरीर में रोग उत्पन्न होने और अभयदेव के अनशन करने तक की परिस्थिति लिखी है परन्तु किसी देवता ने आदेश दिया कि 'स्तम्भनक के पास सेढी नदी के तट पर पलाश वृक्ष के नीचे स्वयम्भू२ प्रतिमा है, तुम उसको वन्दन करो, शरीर स्वस्थ हो जायगा' । प्राचार्य श्र वकों के साथ स्तम्भनक जाने के लिए रवाना हुए, प्रथम प्रयाग में ही उनको सरस आहार की इच्छा हुई, क्रमशः धवलक गांव तक पहुंचे और उनका शरीर स्वस्थ हो गया, फिर पैदल चलकर स्तम्भनक पहुँचे । श्रावकों ने मूर्ति की तपास की पर कहीं दृष्टिगोचर नहीं हुई, तब गुरु ने कहा - खाखरा-पलाश३ के नीचे देखो, १. गुर्वावली में “संवेगरंगशाला" का श्लोक-परिमाण अठारह हजार बताया है, यह भी लेखक की अतिशयोक्ति समझना चाहिए । ग्रन्थ-भण्डारों की प्राचीन सूचियों में "संवेग रंगशाला' का श्लोक-परिमाण १००७५ लिखा मिलता है । गुर्वावलीकार के लिखे परिमाण में लगभग आठ हजार श्लोक अतिशयोक्ति के हैं। गुर्वावली ने प्रत्येक बात में आठ पाने का रुपया बताकर अपने प्राचार्यों की महिमा बढ़ायी है, जो इतिहास-क्षेत्र में अन्धकार को ही फैलाता है। २. लेखक की स्वयम्भू प्रतिमा होने की कल्पना अज्ञानपूर्ण है। शिवलिंग स्वयम्भू हो सकता है, परन्तु किसी भी देव की प्रतिमा स्वयम्भू नहीं होती। प्रतिमा तो घडने से ही तैयार होती है। ३. लेखक ने पलाश शब्द के पूर्व में "खंखरा" शब्द लिख कर अपना अर्वाचीनत्व सूचित किया है । "पलाश" शब्द इतना कठिन नहीं है कि उसके साथ "खंखरा" शब्द लिखने की आवश्यकता हो, इससे तो सूचित होता है कि लेखक की दृष्टि में "पलाश" दुर्जेय प्रतिभासित हुआ है, जिससे उसे सुगम बनाने के लिए साथ में "खंखरा" अर्थात "खाखरा नाम भी लिख दिया है। ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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