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________________ द्वितीय-परिच्छेद ] [ २५१ किया, महेश्वररा रि वि० सं० ११५० में परलोक वासी हुए, महेश्वरस रि के पट्ट पर देवसूरि हुए। ४६ देवसूरि - देवस रि ने सुवर्णगढ़ पर पार्श्वनाथ के चैत्य की प्रतिष्ठा की, फिर महावीर के चैत्य पर सुवर्णकलश स्थापन करवाया। उस समय में पौर्ण मिक गच्छ आदि प्रकट हुए, देवस रि भी १२२५ में स्वर्गवासी हुए। उनके पट्ट पर न(२)देवस रि ५० न(र?)देवसूरि - प्राचार्य नरदेवस रि ने ज्योतिष शास्त्रों का निर्माण किया, और सोनगिरों को प्रतिबोध देकर जैन बनाया, जालन्धर तालाब के पास जिनचत्य को प्रतिष्ठा की, वि० सं० १२७२ के वर्ष में स्वर्गवासी हुए । इनके पट्ट पर कृष्णसूरि हए । इनके पट्ट पर विष्णुस रि और इनके पट्ट पर साम्रदेवस रि ५१ कृष्णमूरि५२ विष्णुसूरि - ५३ माम्रदेवसूरि- पाम्रदेवस रि ने कथाकोशादि ग्रन्थों की रचना की, इनके पट्ट पर सोमतिलकस रि, इनके पट्ट पर भीमदेवस रि। ५४ सोमतिलकसूरि - ५५ भीमदेवसूरि - भीमदेव ने कोरटा गांव में चैत्य की प्रतिष्ठा की, वि० सं० १४०२ में कालगत हुए। इनके पट्ट पर विमलसरि हुए। ५६ विमलसूरि- विमलस रि ने मेवाड देश में उदयसागर की पाल पर चैत्य में जिनबिम्ब की स्थापना करवाई। ५७ नरोत्तमसूरि - उनके पट्ट पर नरोत्तमस रि वि० सं० १४६१ में स्वर्गवासी हुए। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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