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द्वितीय परिच्छेद ]
६६ पुण्यसागरसूरि - सं० १८१७ में जन्म १८३३ में दीक्षा, १८४३ में प्राचार्य पद सं० १८७० में स्वर्गवास |
श्री राजेन्द्रसागरसूरि - सं० १८६२ में स्वर्गवास मांडवी बन्दर ।
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१८२३ में सूरिपद, १८३६ में गच्छेश, १८८३ में स्वर्गवास ।
७०
७१ श्री मुक्तिसागरसूरि - सं०
७२ श्री रत्नसागरसूरि- ९८६ में जन्म,
७४
१८५७ में जन्म १८६७ में दीक्षा, १८६२ में प्राचार्य - गच्छनायक पद, सं० १८६३ में सेठ खोमचन्द मोतीचन्द ने शत्रुञ्जय पर टूक बंधा कर ७०० जिनबिम्ब भरवाये थे, उन सब की अंजनशलाका कर प्रतिष्टा करवाई । सं० १८१४ में स्वर्गवास || अंचल म्होटी. पट्टा. पृ. ३७४.
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दीक्षा १८०५ में १६१४ में
७३ श्री विवेकसागरसूरि - जन्म सं० १८९१ में, १६२८ में प्राचार्य-पद १८४८ में स्वर्गवास ।
भ० जिनेन्द्रसागरसूरि ।
श्राचार्य - पद, १६२८ में स्वर्गवास ।
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