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________________ द्वितीय-परिच्छेद ] [ २२६ श्री पाश्वंचन्द्रगच्छ नाम पड़ने के बाद - ५८ श्री पार्श्वचन्द्रस रि १ – पार्श्वचन्द्र के प्रथम शिष्य प्राचार्य विजयदेव ने अपने गुरु उपाध्याय पार्श्ववन्द्र को प्राचार्य-पद दिया था। पार्श्वचन्द्रस रि का जन्म सं० १५३७, हमीरपुर में, दीक्षा १५४६, उपाध्याय-पद सं० १५५४ में, क्रियोद्धार सं० १५६४ में, प्राचार्य-पद स० १५६५ में, स्वर्गवास सं० १६१२ में । ५६ श्री समरस रि – सं० १६२६ में स्वर्गवास , ६० , राजचन्द्र सूरि ६५ श्री नेमिचन्द्र ७० श्री लब्धिचन्द्र सू रि ६१ , विमलचन्द्रस रि ६६ , कनकचंद्रसूरि ६१ , हर्षचन्द्रस रि ,, जयचन्द्रस रि ६७ , शिवचन्द्रसूरि ७२ , मुक्तिचन्द्रसूरि ६३ , पद्मचन्द्रसूरि ६८ , भानुचन्द्रसरि ६४ , मुनिचन्द्रसू. द्वि. ६६ , विवेकचन्द्र रि ७३ श्री भ्रातृचन्द्रसू रि २ - का जन्म सं० १६२० में बड़गांव (मारवाड), दीक्षा सं० १९३५ में वीरमगांव, क्रियोद्धार सं. १६३७ में, मांडल में, प्राचार्य पद १६६७ शिवगंज ( मारवाड) स्वर्गवास १६७२ में अहमदाबाद में। ७४ श्री सागरचन्द्रस रि का जन्म सं० १६४३, दीक्षा १६५८ में, प्राचार्य १९६३ में, १८६५ में स्वर्गवास । ७५ , मुनिवृद्धिचन्द्र Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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