SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२४ ] [ पट्टावली-पराग नाम्ना स्वमतं प्रकाशितवान् तेन प्रवचनात् बहिर्भूतः । वि० ११४५ तथा ११५० सा प्ररूपरणा संभाव्यते ॥" इसी पट्टावली में - "वादिदेवसूरीणां वि० ११४३ जन्म, ११५२ व्रतं, ११५४ सूरिपदं, १२२६ स्वगर्गोऽभूत् ॥" "सं० १२५० वर्षे पौर्णमियकांचलिकमतोत्थिताभ्यां देवभद्र-शीलगुणाख्याभ्यां श्रीशत्रुञ्जयपरिसरे प्रागमिकमतं प्रादुर्भुतं ।" "तथा च भीमपल्या गुरुभिश्चतुर्मासकं कृतं, ज्ञानातिशयेन तद्भग ज्ञात्वान्यपक्षीयैकादशाचार्येनिवारिता अपि चतुर्मासी प्रतिक्रम्य प्रथमकार्तिकपक्षांतेऽन्यत्र विहताः ॥" ___एक अन्य हस्तलिखित पट्टावली में विजयक्षमासूरि का जन्म पाली में सं० १७३२ में, दोक्षा १७३६ में, १७५६ में पंन्यास-पद, १७७३ भाद्रपद सुदि ८ को प्राचार्य-पद, माह सुदि ६ पदोत्सव उदयपुर में । एक हस्तलिखित पट्टावली में प्राचार्य विजयरत्नसूरि का स्वर्ग-समय वि० सं० १७७३ के भाद्रपद शुक्ला ३ को लिखा है। आचार्य विजयक्षमासूरि का जन्म मेवाड़ प्रान्त में, 'धावल नगर' में हुमा । प्रा. विजयदयासूरि का सूरिपद मांगलोर में और १८०६ में स्वर्गवास हुआ। मा० धर्मसूरि को प्राचार्य-पद १८०३ में उदयपुर में और १८४१ में स्वर्गवास । विजयजिनेन्द्रसूरि को सूरि-पद १८४१ में ।। एक पट्टावली में विजयरत्नसूरि का स्वर्ग १७७३ में “भाद्रपद शु० २ मांगलोर में; सं० १७८४ में विजयदानसूरि को सूरि-पद और स्वर्गवास सुरत में। विजयदेवेन्द्र सूरि का जन्म चित्रावा नगर में, सिरोही में सूरि-पद पौर स्वर्गवास राधनपुर में हुआ। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy