________________
२२२ ]
[ पट्टावली-पराग
-
--
-
सं० १६९२ वर्षे प्राषाढ़ सुदि ११ को उनानगर में विजयदेवसूरि का स्वर्ग० ॥
सं० १६६५ वर्षे विजयानन्दसृरि-गच्छ निकला।
सं० १८५० वर्ष में कार्तिक सुदि ५ को यह पट्टावली पं० कल्याणसागर पठनार्थ लिखी गई है।
हमारी एक हस्तलिखित पट्टावली में प्राचार्य वज्रसेनसूरि का आयुष्य १२० वर्ष का लिखा। ___ प्राचार्य सर्वदेवसूरि के पट्टधर देवेन्द्रसूरि लिखा है।
प्राचार्य विजयदेवसूरि के समय में राजनगर में सेठ शान्तिदास ने प्रत्येक मनुष्य को प्रभावना में एक-एक अंगुठी सोने की दी थी । सागरगच्छ की खुशी में।
हमारी एक पट्टावली जो विजयदयासूरि पर्यन्त की पाट-परम्परा वाली है, उसमें आर्यवज्र का जन्म नि० ४६६ मोर स्वर्गवास जिननिर्वाण से ५०४ में लिखा है।
प्राचार्य रविप्रभ के समय में वीरनिर्वाण से ११६० में श्री उमास्वाति वाचक हुए । प्राचार्य रत्नशेखरसूरि के समय में सं० १५३५ वर्षे लुकामत प्रकट हुआ। उस समय में भारणा नामक व्यक्ति सावुवेश धारण करने वाला हुमा।
इसी पट्टावली में प्राचार्य विजयसिंहसूरि की दीक्षा का वर्ष १६५१ और उपाध्याय-पद का १६७३ का वर्ष लिखा है।
विजयप्रभसूरि का स्वर्गवास सं० १७४६ लिखा है, दीव बन्दर मध्ये उचा गांव में। ... विजयरत्नसरि का पूर्व नाम जीतविजय था। माता-पिता भाई के साथ इनकी दीक्षा विजयप्रभस रि के हाथ से हुई थी। विजयरत्नमरि के चातुर्मास्यों के गांवों की सूची:
सं० १७४६ में भट्टारक-पद । १७३३ में मेड़ता में गुरु के साथ १७४६ पुंजपुर
___Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org