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________________ द्वितीय-परिच्छेद 1 [ २०३ पट्टक लिखे, तब प्रानन्दसूरिजो ने भी अपने अनुयायी साधुनों को अपने ही नाम से क्षेत्रादेश पट्टक लिखे । उपर्युक्त कड़ी ६ और ७ वीं में कविराज ने आठ उपाध्यायों के अहमदाबाद में विजयदेवसूरि के पास जाने पर उपाध्याय धर्मसागरजी को विजयदेवसूरिजी के पास बैठे देखने की बात कही है, जो असंभव है। क्योंकि उस समय तक धर्मसागरजी को स्वर्गवासी हुए बोस वर्ष होने पाए थे। इस दशा में कविराज का कथन प्रमादपूर्ण है। धर्ममागर नहीं, किन्तु उनके शिष्य लब्धिसागर नेमिसागर, अथवा मुक्तिसागर इनमें से सब या कोई एक हो सकते हैं। विजयदेवसूरि के विरोध में उपाध्याय सोमविजयजी, उ० कोतिविजयजी आदि ने जो विरोध का बवण्डर खड़ा किया था, उसका कारण भी सागर विरोधी उक्त उपाध्यायों के प्रचार का ही परिणाम था। प्राचार्य श्री विजयदेवसूरि का सम्पूर्ण जीवन-चरित्र पढ़ लेने पर भी यह वस्तु प्राप्त नहीं होती कि विजयदेवरिजी सागरों के पक्षकार थे। कई स्थानों पर तो विजयदेवसूरिजी को सागरों तथा सागर भक्त गृहस्थों से मुठभेड़ तक हुई है और सागरों को निरुतर होना पड़ा है । प्रस्तुत निरूपण से दो बातें स्पष्ट होती हैं, एक तो यह कि तपागच्छीय प्राचार्य श्री विजयसेनसूरि के पट्ट पर दो प्राचार्य होकर देवसूरि गच्छ, आनन्दसूरि गच्छ नामक दो पार्टिया होने का कारण उपाध्याय धर्म सागर गरिण नहीं थे। दूसरा विजयदेवसूरि को सागरों का पक्षकार बना कर इन पार्टियों की उत्पत्ति का कारण बताया जाता है, यह भी निराधार है। इस झगड़े का मूल कारण क्या था, यह तो ज्ञानी ही कह सकता हैं, परन्तु इतना तो निश्चित है कि तपागच्छ के उपाध्यायाष्टक ने इस सम्बन्ध में जो रस लिया है, उसमें उपा० सोमविजयजी, उपा० कीतिविजयजी के नाम सर्वप्रथम हैं। उपाध्याय कीतिविजयजी के शिष्य उपाध्याय विनयविजयजी ने भी कल्पसूत्र की "सुबोधिका टीका" के निर्माण काल सं० १६६६ तक इस विषय में बड़ी दिलचस्पी ली थी। वे प्रसंग आते ही उपाध्याय धर्मसागरजो की गलतियां बताने में अपना पुरुषार्थ किया करते थे, परन्तु धीरे-धोरे वस्तु ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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