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________________ १९८] [ पट्टावली-पराग - कान में रखी हुई सीसे की सली से समाचार लिख कर पत्र हलकारे को दिया। संघवी ने पत्रिका पढ़ी, समाचार जान कर संघवी ने कहा - "कान फड़वाए और बुद्धि गई', ऊनाऊ से उनको अहमदाबाद बुलवाया। वहां उपाश्रय दो थे, एक दोमीवाडा में, दूसरा निशापोल में। वे दोनों होरविजयसूरिजी के कब्जे में थे। संघवी ने अहमदाबाद में उनको अपनी वखार सौंपी, वहां उतरे। दो शिष्य और रत्नविजयसूरि ये ३ सुख से वहां रहते थे। दूसरे सब यति श्री हीरविजयसूरि की प्राज्ञा में रहते थे। श्री रत्नविजयसूरि के पाट पर श्री हीररत्नसूरि हुए। श्री रत्नविजयसूरि का जन्म सं० १५६४, सं० १६१३ में व्रत, १६२४ में सूरि-पद और सं० १६७५ में श्री राजनगर में स्वर्गवास । .. इस समय में विजयनानन्दसूरि का गच्छ निकला। शाह सोमकरण मनीया तथा नव उपाध्यायों ने मिल कर जिनमें छः उपाध्याय श्री विजयदेवसूरि के और तीन उपाध्याय विजयराजसूरि के थे। इन सब ने मिल कर प्रानन्दसूरि गच्छ की परम्परा चलाई । ६२. श्री हीररत्नमरि : श्री हीररत्नसरि का जन्म सं० १६२० में हुआ। सं० १६३३ में व्रत, सं० १६५७ में वाचक-पद, सं० १६६१ के वैशाख सुदि ३ को आचार्य पद, सं० १६७५ में भट्टारक-पद, सं० १७१५ के श्रावण सुदि १४ को राजनगर में आसासुमा की बाड़ी में स्वर्गवास । ६३. श्री जयरत्नमरि । श्री जयरत्नसूरि का १६६६ में जन्म, १६८६ में व्रत, सं० १६६६ में राजनगर में प्राचार्य-पद, १७१५ में भट्टारक-पद, सं० १७३४ के चैत्र सुदि ११ के दिन सूरत में स्वर्गवास ।। ६४. श्री हेमरत्नमरि : हेमरत्नसूरि का सं० १६६६ में जन्म, सं० १७०४ में व्रत, १७३४ में भट्टारक-पद, सं० १७७२ में कार्तिक सुदि १ को झिन्झुवाड़ा में . स्वर्गवास। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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