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________________ १८४ ] [ पट्टावली-पराग ___ सौभाग्यहर्षसूरि का जन्म १५५५ में, सं० १५६३ में हर्षदान गणि को वड़नगर में वहराए और हेमविमलसूरिजी ने दीक्षा दो, सं० १५८३ के आश्विन सुदि १० को श्री हेमविमलसूरिजी ने अपने पट्ट पर स्थापित किया। ___सं० १५८६ के ज्येष्ठ सुदि ६ को सौभाग्यसूरि का गच्छनायक-पद महोत्सव किया। सं० १५६५ में पौष सुदि ५ गुरुपुष्य योग में पं० सोमविमल गरिण को वाचक-पद दिया। उसी वर्ष में ईडरगढ़ में श्री सौभाग्यहर्षसूरि ने ५०० जिनप्रतिमानों की प्रतिष्ठा की, सं० १५९६ में प्राप अहमदाबाद पधारे और चातुर्मास्य वहीं किया। श्रीसंघ ने १५६७ के पाश्विन सुदि ५ के दिन वाचक सोमविमल तथा सकलहर्ष मुनि को प्राचार्य पद दिए तथा दो को वाचक-पद दिए । उपाध्याय-पद विजयकुशल तथा विनयकुशल को। सं० १५६७ के कार्तिक सुदि १२ के दिन सौभाग्यहर्षसूरि स्वर्गवासी हुए। . सौभाग्यहर्षसूरि प्रोसवाश-वंशीय थे, उनके हाथ से ३०० दीक्षाए हुई थीं। ६० तत्पट्ट सोमविमलसरि - खम्भात के समीप कंसारीपुर में पोरवाल कुल में सोमविमल का जन्म हुआ था सं० १५७० में, सं० १५७४ के वैशाख शु० ३ को अहमदा. बाद में हेमविमलसूरि द्वारा दीक्षा, सं० १५६० के कार्तिक व० ५ के दिन गणि-पद, सं० १५६४ में सिरोही नगर में सौभाग्यहर्षमूरि के हाथ से फाल्गुण व० ५ दिने सोमविमल को पं० पद, गुरु के साथ वीजापुर गए । सं० १५६५ में वाचक-पद, १५६७ में सौभाग्यहर्षसूरि द्वारा अहमदाबाद में सूरिपद। सं० १५६६ में पाटन में चातुर्मास्य, चौमासे के बाद १६०० में कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा के दिन पाटण के संघ के साथ शत्रुक्षय, गिरनार की यात्रार्थ गए। कानमदेश के वणचरा गांव में आपने पं० प्रानन्दप्रमोद गणि को वाचक-पद दिया, तब उपाध्याय आनन्दप्रमोद गणि ने गच्छ को Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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