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________________ पडावलीसारोद्धार लेखक : रविवर्धन उपाध्याय आचार्य श्री विजयप्रभसूरि सं० १७२६ में उदयपुर गए, उदयपुर में प्रतिष्ठा कराकर मेवाड में दो चातुर्मास्य किये, फिर मारवाड़ में गए और सं० १७३२ में नागौर नगर में श्री विजयरत्नसूरि को अपना पट्टधर कायम किया और मेड़ता नगर में वर्षा चातुर्मास्य ठहरे, बाद में मेवाड़ मेवात, मारवाड़ देश में धर्म का प्रचार करते हुए, सं० १७३६ में गुजरात गये और श्री पाटन नगर में वर्षा चातुर्मास्य किया, प्राचार्य श्री विजयरत्नसूरिजी के दोनों प्रकार के भाई पं० विजयविमलगणि के वाचनार्थ उपा० रविवर्द्ध नगणि ने इस पट्टावलीसारोद्धार का उद्धार किया। इस पट्टावली के नीचे की अनुपूर्ति : __५६ श्री विजयसेनसूरि, ६० राजसागरसूरि, ६१ वृद्धिसागरसूरि, ६२ लक्ष्मीसागरसूरि, ६३ कल्याणसागरसूरि । श्री गुरुपट्टावल -अनुपूर्ति : विजयरत्नसूरि का पालनपुर में जन्म सं० १७२२ में, दीक्षा सं० १७३२ में, प्राचार्य-पद १७५० में सूरिपद (गणानुज्ञा) सं० १७७३ के भाद्रपद वदि ३ को, उदयपुर में स्वर्गवास । विजयरत्नसूरि के पट्ट पर ६४ वें विजयक्षमासूरि, इनका जन्म पाली में, सं० १७३८ में दीक्षा, सं० १७७३ में सूरिपद, भौर सं० १७८५ में चैत्र सुदि ५ को मांगलोर में स्वर्गवास । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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