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________________ [ पट्टावली-पराग - 'सौराष्ट्र के केन्द्र नगर "वलभी" में एकत्र हुए। 'मथुरा' तथा 'वलभी' में सम्मिलित होने वाली टुकड़ियों के नेता क्रमशः "स्कन्दिलाचार्य" मोर "नागार्जुन वाचक' थे। दुष्काल के प्रभाव से श्रमणों का पठन-पाठन तो बन्द हो ही गया था, परन्तु पूर्व पठित श्रुत भी धीरे धीरे विस्मृत हो चला था । सधों के नेता दोनों श्रुतधरों ने कुछ समय तक ठहर कर विस्मृतप्रायः आगमों को लिपिबद्ध करवाया। किसी को कोई प्रध्ययनादि याद था, तो किसी को कोई, उन सब को पूछ पूछ कर और श्रुतधरों की अपनी स्मृतियों के आधार से पागम लिखवाए गए और उनके प्राधार से श्रमणों का पठन-पाठन फिर प्रारंभ हुमा । यह समय लगभग विक्रम की चतुर्थ शताब्दी में पड़ता था। मथुरा में जो पागम लिखवाये और पढ़ाए गए उसका नाम 'माधुरीवाचना" और वलभी में जो लिखाए पढ़ाए गए उसका नाम "वालभी. वाचना" प्रसिद्ध हुआ, इस प्रकार की दोनों वाचनाओं के अनुयायो देश में विहार-चर्या के क्रम से विचरते हुए लगभग दो सौ वर्षों के भीतर फिर "वलभी नगरी" में सम्मिलित हुए। इस समय "माथुरी वाचना" के अनुयायी श्रमण संघ के नेता "श्रीदेवद्धिगणि" और "वालमी वाचना" के श्रमणसंघ के प्रधान “कालकाचार्य" थे, दूरवर्ती स्थानों में स्मृतियों के प्राधार पर लिखे गये प्रागमों में कई स्थानों पर पाठान्तर और विषयान्तर के पाठ थे। उन सबका समन्वय करने में पर्याप्त समय लगा। इस पर भी कोई स्थल ऐसे थे कि जिनकी सच्चाई पर दोनों संघ निश्शंक थे, ऐसे विषयों पर समझौता होना कठिन जानकर दोनों ने एक दूसरे के पाठों को वैसा का वैसा स्वीकार किया। इसके परिणाम स्वरूप कल्पान्तर्गत श्रमण भगवान् महावीर के जीवन-चरित के अन्त में तत्कालीन समय का निर्देश दो प्रकार से हुआ है । 'माधुरी वाचना" के अनुयायियों का कथन था कि वर्तमान वर्ष ६५० वा है। तब वालभ्य संघ की गणना से वही वर्ष ६६३ वां माता था, इन १३ वर्षों के अन्तर का मुख्य कारण एक दूसरे से दूरवर्तित्व था। उत्तरीय संघ ने जिन युगप्रधानों का समय गिनकर ६८० वां वर्ष निश्चित किया था उसमें दाक्षिणात्य संघ ने एक युगप्रधान १५ वर्ष के Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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