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द्वितीय परिच्छेद ]
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पाटन प्रादि अनेक नगरों गांवों को पवित्र करते हुए आप पाबु पहुँचे । माबु को यात्रा कर सिरोही गए, सिरोहो के राजा श्री सुरनान ने अपका बड़ा सम्मान किया, वहां से क्रमशः श्री राणकपुर, वरकाणा पाश्वनाथ की यात्रा करते हुए अपनी जन्मभूमि नाडलाई होते हुए, मेड़ता, डोड़वारणा, वराट, महिम नगरादि में होते हुए लुधियाना पहुंचे । वहां पर रहे हुए शेख अबुल फजल के : तीजे फैजी नामक ने स रि को वंदन किया, श्रावकों की तरफ से प्राचार्य का होता हुअा सत्कार देखकर फैजो बहुत खुश हुप्रा और जल्दी से लाहौर पहुँच कर बादशाह का सर्व वृत्तान्त निवेदन किया, जिसे सुनकर बादशाह भी मिलने के लिये विशेष उत्कण्ठित हुना। क्रमशः विजयसेनसरिजी ने बादशाह की तरफ से दिए गए वादित्रादि ठाट के साथ लाहौर में प्रवेश किया और उसी दिन श्री शेखजी, रामदास प्रमुख पुरुषों द्वारा "काश्मीरी महल' नामक महल में बादशाह से मिले ' बादशाह भी प्राचार्यश्री को देखकर परम सन्तुष्ट हुअा और श्री हीरविजयस रिजी के वृत्तान्त के साथ मार्ग का कुशल वृत्त पूछा । प्राचार्य ने भो श्री हीरस रिजी की तरह से धर्मशीर्वाद देने का कहा, बादशाह खुश हुमा और विजयसेनस रिजी से आठ प्रवधान सुनने की इच्छा व्यक्त की · गुरु की आज्ञा से गुरु के शिष्य श्री (नन्दि) नन्दविजय पंडित ने बादशाह के सामने पाठ प्रवधान किये, जिन्हें देखकर बादशाह बहुत ही चमत्कृत हुप्रा ।
... एक जैन प्राचार्य के सामने बादशाह का इतना झुकाव और सत्कार देखकर किसी भट्ट ने बादशाह के सामने जैन साधुत्रों की निन्दा की। उसने कहा- जैन लोग ईश्वर को नहीं मानते, सर्य को नहीं मानते इसलिए ऐसे साधुओं के दर्शन भी राजा को नहीं करने चाहिये । इत्यादि मुनकर बादशाह को मानसिक कोप तो हुप्रा परन्तु ऊपर से कुछ भी विकृति नहीं दिखाई, अन्य दिवस प्राचार्य के वहां जाने पर बादशाह ने भट्ट द्वारा कहो हुई बातें प्राचार्य के सामने प्रकृट की। प्राचार्य ने देखा कि किसी खल ने बादशाह को बहकाया है, यह सोचकर उन्होंने उन्हीं के शास्त्र से जगदीश्वर के स्वरूप का वर्णन किया। इसी प्रकार सर्य तथा गंगोदक के सम्बन्ध में भी प्राचार्य ने ऐसा वर्णन किया कि जिसे सुनकर बादशाह खुश हुप्रा और पहले से भी
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