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________________ १४८ ] [ पट्टावली-पराग भाई "धर्मकीर्ति" को उपाध्याय पद प्रदान किया, शासन की बडी उन्नति हुई, श्राचार्य श्री विद्यानन्दसूरि ने "विद्यानन्द" नामक एक व्याकरण बनाया जो स्वल्पसूत्र वह्नर्थ युक्त होने से विद्वानों में पसन्दगी पाया । आचार्य श्री देवेन्द्रसूरिजी ने गुजरात से फिर मालवे की तरफ विहार किया और विक्रम संवत् १३२७ के वर्ष में श्राप वहीं स्वर्गवासी हुए। दैवयोग से श्रीविद्यानन्दसूरि भी केवल १३ दिन के बाद बीजापुर में स्वर्गवासी हो गए; इसलिये छ: महीने के बाद "विद्यानन्द" के समान गोत्रीय किसी श्राचार्य ने "श्री धर्मकीर्ति" उपाध्याय को आचार्य पद दिया और "श्री धर्मघोषसूरि" यह नाम रखा । प्राचार्य देवेन्द्रसरिजी ने "श्राद्धदिनकृत्यवृत्ति" "नव्य पांच कर्म ग्रन्थ " सवृत्ति, “सिद्धपंचाशिका" सवृत्ति, "धर्मरत्न प्रकरण" बृहद्वृत्ति, "सुदर्शनाचरित्र" "चैत्यवन्दनादि तीन भाष्य" "वन्दारु वृत्ति" आदि अनेक संस्कृत प्राकृत ग्रन्थों की रचना की है । * श्री देवेन्द्रसूरिजी के पट्ट पर ४६ वें धर्मघोषसूरिजी हुए। धर्मघोष सूरि भी बड़े विद्वान् और प्रभावक प्राचार्य थे । धर्मघोषसूरि ने भी " संघाचार भाष्य" "कायस्थितिस्तव" "भवस्थितिस्तव" चतुर्विंशतिजिनस्तव संग्रह " " स्तुतिचतुर्विंशति" यमकमय इत्यादि अनेक छोटे बड़े ग्रन्थों की रचना की थी। संवत् १३५७ के वर्ष में धर्मघोषसूरिजी स्वर्गवासी हुए । " 'धर्मघोषसूरि के पट्टधर श्री सोमप्रभसूरि भी विद्वान् श्राचार्य हो गए हैं, प्रापने "नमिऊरणं भणइ" इत्यादि आराधना प्रकरण की रचना की थी, वि. Jain Education International 2010_05 १६ के वर्ष में खरतर उपाध्याय श्रभयतिलक के साथ विद्यानन्द की उज्जैन में श्रमणयोग्य जल के सम्बन्ध में चर्चा होना लिखा है, और उस स्थल में " तपोमतीयं पंडित विद्यानन्द" इस प्रकार का शब्दप्रयोग किया गया है, यदि उस समय विद्यानन्द आचार्य होते तो गुर्वावलीकार विद्यानन्द के लिये “पं०" शब्द का प्रयोग न करें प्राचार्य अथवा सूरि प्रादि शब्द का प्रयोग करते, इससे प्रमाणित होता है कि १३२३ में ही श्रीविद्यानन्द आचार्य बने थे और १३२७ में उनका देहान्त हो गया था । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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