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फैल्प - स्थविरावली
उपोद्घात : "कल्प" शब्द से यहाँ दशाश्रुतस्कन्वान्तर्गत "पर्युषणा कल्प" समझना चाहिए । यद्यपि पर्युषणाकल्प दशाश्रुतस्कन्धका एक अध्याय है, तथापि जैन सम्प्रदाय में प्रस्तुत कल्प का प्रचार अधिक होने के कारण दशाश्रुत-स्कन्ध की स्थविरावली न लिखकर हमने इसे "कल्पस्थविरावली" लिखना ठोक समझा है ।
"कल्पस्थविरावली" प्रार्य यशोभद्र तक एक ही है, परन्तु आर्य यशोभद्र के आगे इसकी दो धाराएँ हो गई हैं। एक संक्षिप्त और दूसरी विस्तृत । संक्षिप्त स्थविरावली में मूल परम्परा के स्थविरों का मुख्यतया निर्देश किया गया है। तब विस्तृत स्थविरावली में पट्टधर स्थविरों के अतिरिक्त उनके गुरुभ्राता स्थविरों की नामावलियों, उनसे निकलने वाले गरण पोर गरणों के कुल तथा शाखाओं का भी निरूपण किया है। ____संक्षिप्त स्थविरावली में आर्य वज्र के शिष्य चार बताए हैं। उनके नाम "आर्य नागिल, आर्य पद्मिल, प्रार्य जयंत और प्रार्य तापस" लिखे हैं। तब विस्तृत स्थविरावली में प्रार्य वज्र के शिष्य तीन लिखे हैं, जिनके नाम "आर्य वज्रसेन, आर्य पद्म और प्रार्य रथ" हैं । इन दो स्थविरावलियों के बीच जो मत-भेद सूचित होता है, उसके सम्बन्ध में हम यथास्थान विवरण देंगे ।
"कल्प-स्थविरावली" भी प्रारंभ से अंत तक एक ही समय में लिखी हुई नहीं है, जिस प्रकार आगम तीन बार व्यवस्थित किये गये थे, उसी प्रकार स्थविरावली भी तीन विभागों में व्यवस्थित की हुई प्रतीत होती है । आगमों
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