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प्रथम-परिच्छेद ]
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धनंजय, प्रभाचन्द्र और जिनसेन के नामोल्लेख भी संगत हो जाते हैं, मात्र वीरसेन स्वामी को विक्रम की ग्यारहवीं शती के ग्रन्थकार मानने पड़ेंगे।
दिगम्बर ग्रन्थकारों में से अनेक लेखकों ने अपने ग्रन्थों में समयनिर्देश में संवत् के अर्थ में शक विक्रम-नृप' प्रादि शब्द प्रयुक्त किये हैं, उदाहरणस्वरूप भट्टारक श्री देवसेनसूरि ने "दर्शनसार" में श्वेताम्बर मत आदि को उत्पत्ति को सूचना "विक्रम नृप" शब्द से की है। पहले दिगम्बर विद्वान् इस समय-निर्देश को "विक्रम संवत्" मानते थे, पर वर्तमान में डॉ. ज्योतिप्रसाद आदि ने इसे शक संवत् मान कर भट्टारक देवसेन का समय विक्रम संवत् १०२५ का निश्चित किया है, इसी प्रकार सर्वत्र विशाल दृष्टि रख कर विद्वानों को वास्तविकता समझ कर मतभेदों का समन्वय करना चाहिए।
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