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प्रथम-परिच्छेद ]
तिथि को अपने केशों का लुंचन करते थे। श्वेताम्बरों के "पर्युषणाकल्पसूत्र" में पाण्मासिक और सांवत्सरिक केश खंचन करने का विधान है। इसके अनुसार जो श्रमण वर्ष में एक ही बार लुंचन करते थे, उनकी दाढ़ी-मूंछों के बाल लम्बे बढ़ जाने के कारण से लोग उन्हें "कूर्चक" इस नाम से पुकारते थे।
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