SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 493
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३५४) जैनस्तोत्रत्रसन्दोहे। [श्रीशुभसुन्दरबिन्दु नवपइसद्विति तह भैरवमंतिई कणयपुप्फमंतेवि धाणि पागडि हुअ जंतिअ । अवचूरिः । "ॐ नमो माहामाया बाळकुंआरी, करई सेत सणगार । सुवर्णपा. लखि बइठी करइ सार । ला देवदत्त मनुं चितवइ तेहनइं करइ संहार संतोष स्वाहा ही ठः" अनेन मन्त्रेण अभिमन्त्र्य एतद् यन्त्रं दीयते । ॐनमो सेत्री सात्री सिद्धवडि | २२ । ३। ९ । १५ १६ | कुण कुण छइ ? च्यारि वीर, कुण । । । । कुंण ? नारसिंह, चतुर्भुज, त्रैलोक्यडंबर, कालभैरव तेहनी हाक वाजी एकवीसमई ब्रह्माण्ड गाजी, चेडऊ | १८ / २४ / ५ ६ | १२ | मार करइ, पइसार करइ, हिइं पइसइंतु | १० | १७ / ११ / २३ । ४ हांस लिई, नाभिकमल पइमइंतु परमहंस लिई, धूणइ धूणावइ, न धूणइ तु श्रीभैरवनी आज्ञा फुरइ" इणइं मंत्रिई कणवीर पुष्प २१ वार २१ अभिमंत्री नासिकाइं घ्राण लेवराविई दोष प्रगट हुई बोलइं । दोष टालवा भणी धूप लखिई छई गुग्गल, गोरोचन, सरिसव, राई, हिंग, मीठ, मिरी, सुंठि, निगुडि पान, लिंबपत्र, सर्पकांचली, धूसऊ, ईश्वरनी माल, हनुमाननी माल, रविवार गृहीत गादह लीड्ड, चहूवटानी धूलि, वंशलोचन, जारीना कुकसा, मार्जारनी विष्ठा, श्वाननी विटा, वांसनी गांठि, सममात्रा एकत्र करी श्रीपञ्चाङ्गुलीनई, मन्त्रइं रविवारइं १०८ वारई अभिमंत्रीई दिन ३ त्रिकाल धूणी दिजई सर्वदोष छांडी जाई ॥
SR No.002613
Book TitleJainstotrasandohe Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1932
Total Pages662
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy