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________________ (३४०) wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww जैनस्तोत्रसन्दोहे [श्रीमेरुनन्दनो [ १०६ ] श्रीमेरुनंदनोपाध्यायविरचितं श्रीसीमन्धरजिनस्तवनम् । अतिरसहरिसरसेण विहसियलोयणमणवयणु । थुणिसु भावि नियसामि सिरिसीमंधरु जिणरयणु ॥१॥ जो कप्पूरदलेहिं निम्मइ निम्मलु जिणभवणु । जो नियपायबलेहिं हारावइ चंचलु पवणु ॥२॥ ससहरकिरण करेण धरवि जो य हिंडइ गयणि । अह नियसत्तिवसेण करइ दिवसु फेडिवि रयणि ॥३॥ जइवि हु सो वि समत्थु न हु तुह गुणगणसंकलणि । कवणमत्त नीसत्तु हूउं मूरषसिरि मउडमणि ॥ ४ ॥ तहवि हु भत्तिभरेण तरलिउ विरचिसु संथवणु । जिणि कारणि जिणभत्ति वंछिउं साहइ नवि कवणु ? ॥५॥ भास-तं जंबुयदीवह मंडणउ गिरिवरमेरुपवित्तु । त तसु निवसइ जो पुष्वदिसि महाविदेहु सुखित्तु । त तसु विसिद्ध अट्ठमविजउ पुक्खलवइ इय नामि त तहं विहरइ किरि भुवणगुरो सिरि सोमंधर सामि ॥६॥ त कणयवण्णतणु पंचसयधणुहपमाणसरीरु त चउतीसइं अइसयसहिउ सायर जेम गंभोरु । त पइदिणु पयपंकयलुलियचउविहदेवनिकाउ त धण्ण ति जे पिक्खहिं नयणि सीमंधरु जिणराउ ॥७॥
SR No.002613
Book TitleJainstotrasandohe Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1932
Total Pages662
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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