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________________ - सूरिविनिर्मितम् ] श्रीगौतमस्वामिस्तोत्रम् (२३७ ) सिद्धे जिणंमि केवलमिओहरीहिं जिणुव्व तं महिओ । दीवा पवत्तिओ किं न दीवओ तप्पहं भयइ ? ॥२०॥ कत्तिअसिअपाडिवए केवलमहिमा सुरेहि तुह विहिआ। तेणजवि तम्मि दिणे दीसइ ऊसवमई पुहई ॥२१॥ तुह छत्ततलं अप्पं सित्तं जो झाइ अमयबिंदूहि । सो संतिपुद्धिकित्तीण भायणं होइ अणुदिअहं ॥२२॥ मोहतमोहं हरिउं बारसवरिसाइ केवलपहाहि । अणुगहिअ जणं मुणिमणकमलाई पयासिय रविव्व ॥२३॥ बाणवइवासजीवी निसिरिअ सगणं सुहम्मसामिम्मि । मासं पाओवगओ रायगिहे तं गओ सिद्धिं ॥२४॥ नमिरसुररायसेहरचुंबिअपय ! संथुओसि इअ भयवं !। जिणपह ! मुर्णिद ! गोयम ! मह उवार पसीअ अविसामं ॥२५॥ [९१ ] श्रीजिनप्रभसूरिप्रणीतं मन्त्रगर्भितं श्रीगौतमस्वामिस्तोत्रम् । उनमस्त्रिजगन्नेतुर्वीरस्याग्रिमसूनवे । समग्रलब्धिमाणिक्यरोहणायेन्द्रभूतये ॥ १॥ पादाम्मोजं भगवतो गौतमस्य नमस्यताम् । वशीभवन्ति त्रैलोक्यसम्पदो विगतापदः ॥ २ ॥
SR No.002613
Book TitleJainstotrasandohe Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1932
Total Pages662
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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