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[३३८
नेमिनाहचरिउ
[३३८]
इय सुणे विणु कमलु स-परियणु रोसारुण-नयण-दलु गहिवि धणुहु साडोवु जंपइ । पर-कनि म मरहि तुहुँ कुमर समरि टुक्कंतु संपइ ।। सुत्तउ से हु म जग्गवहि करिहि म गिण्हहि सप्पु । सरणु न होसइ तिहुयणु वि हउं तुह भंजिसु दप्पु ॥
[३३९]
इय पयंपिर चित्तगइ-कमल रण-रंगिय-तणु-लइय पउर-सेन्न-संछन्न-नहयल । आरोविय-धणुह-गुण- रविण दलिय-माहप्प-पर-वल ॥ समर-धरहं अहरिय-करुण- दुद्धर-माण-मरट्ट । दो वि ति हुक्का भड-तिलय स्उि-कुल-दलण-घरट्ट ।।
[३४०]
हय-खुरुक्ख य-खोणिधर-रेणुपसरेण छन्निहि दिसिहि अप्प-परह न विसेसु नज्नइ । फेक कारहिं सिक्-सहस चूय-कुलिण घुक्कारु किज्जइ ।। नच्चहिं गयणि पिसाय-सय साइणि हरिसु वहति । तियसासुर-तरुणिउ गयणि ठिय रण-भरू जोयंति ॥
[३४१]
हत्थि नज्जहिं गुलुगुलइएण नजंति हय हेसिएण बंधु वग्ग हक्कहिं मुणिज्जहि । रह-चक्क घणघण-रविण रणि रसंत तुरई वि नज्जहि ॥ मुहड विसंठुल संचरहिं धूलुद्धलिय-केस । कृणहि य कज्जई तम-भरि वि इह जिह पंसुलि वेस ॥ ३३८. २. क. दतु; ७ क. गिण्हइ; ९. क संजिसु. ३४१. ३. क. हक्कहि. ६. क. सुहडि.
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