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तइयभवि चित्तगबुतंतु
[३४२] एत्थ अंतरि फुरिय- माहपु
सिरि-सूर ते यंगरुहू कोवारुण- कुडिल- नियसिरि-चित्तगइ - कुमारु वरभुय-वल-तोलिय-तियस-पहु जुय-वित्थिण्णय- वाहु
[३४३] एक्कु संघइ देव्व - जोएण
सर पसरहिं सय- सहस संरुद्ध-रवि-कर-नियर aft सु. सारहि न सु-सुहडु चित्तगण सर - जालियउ
थिर होह मा भउ करह इय भणिरु विसंगहिउ
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एगरूत्र - जस-पसर-कंखिउ । नयण - जुएण पर-वल कडक्खिउ || विज्जा - सहस - साहु |
[३४४]
अरिरि नासह केण कज्जेण
लक्ख- कोडि छाइय-नहंतर । कमल- सेन्नि निवडहिं निरंतर || न हउ न करि न पयाइ । जो न पणट्ठउ जाइ ॥
रणरंग- सुहं जिणिवि उववेत्तु सुमित्त-निवगंतु सुमित्तह नरवइहि सिरि-चित्तगइ - पसाय-वस
अह लहु जय-जय-रव-मुहल
यह aियस-नियंविणिहिं मुक्किय कुसुमहं बुद्धि ||
जणि सत्त तुम्हहं नियंतहं । कमल- कुमरु मग्गेण संतहं ॥ भुवण - जणिय- संतुट्ठि !
[३४५]
अह मुविणु कमलु स-वलो वि
भुव भरिव निय- कित्ति पसरिण । भणि भरिय-विफुरिय- हरिसिण | वियरिय अखलिय-सील | धरिय महासइ-लील ॥
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