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[३४६
नेमिनाहरिउ
[३४६] अह सुमित्तह समर-वुत्तंतु परिसाहिउ चित्तगइ- . सविह-गएण खयरेण एगिण । ता नरवइ हरिसिउ वि भइणि-लंभि भाविउ विवेगिण ॥ चिंतइ - घिसि घिसि एरिसउ कसु कए जिय-संहारु । हुयउ जाम स-जिणिहिं कहिउ निरु संसारु असारु ॥
[३४७] जमिह जणउ वि कुणइ अवमाणु जणणी वि हु अवयरइ देइ दुहई दुसहाई बंधु वि । भइणी उण पर-भवण- विहिय-सोह सायरु ति-संझु वि ॥ निय-कज्जुज्जय-मानसह दइयह किं भणियव्वु । चिर-संचिउ वि जु नेह-भरु चयइ खणेण वि सव्वु ॥
[३४८] सिहरि-सरि-रय-सरिसु तारुण्णु करि-कण्ण-चंचल विहवु सयण-नेहु सरयब्भ-विब्भमु । संझब्भ-रायब्भहिउ भियगु भणइ जिणवरह आगमु । इय चिंतंतु सुमित्त-निवु मेलिवि सयलु स-चग्गु । रज्जि निवेसिवि निय-तणउ पसरिय-तेय-उदग्गु ॥
[३४९] अह कहेविणु हियय-सब्भावु सिरि-सूरतेयंगयह वहु-वियप्पु पनयणु पहाविवि । अहिकंखिवि परम-सुहु हियय-मज्झि गुरु-वयणु ठाविवि ॥ उज्जाणम्मि समोसढहं निय-नयरह वि सयासि । गिण्हइ गंतु चरित्तु निवु सुजस-मुर्णिदह पासि ॥
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