________________
तइयभवि चित्तगतंतु
[३५०] ता विसे सिण चित्तगइ-कुमरु पसरंत-रोमंच-भरु चारु-चरिय-चरणेक्क-माणम् । तस्सेव य अहिणवह राय-रिसिहि गुण-गहणि अणलस ।। वंदिवि मुजस-मुणीसरह स-हरिसु पय-पउमाई । पत्तु स-नयरि सरिवि नियय- जणणि-जणय-नामाई ॥ इओ य--
[३५१] सुणिवि सयलु वि कमल-वुत्तंतु अच्चंत-उन्विग्ग-मणु दहु अणंगसीहु प्पयंपइ । अरि निग्गुण कमल तएं एहु विहिउ किमकज्जु संपइ ॥ जं पर-रमणिहि हरणि एगु स-कुलह जणिउ कलंकु । तह अवह स्थिउ सुहड-जसु पुन्वज्जिउ वि असंकु ॥
[३५२]
अहव केत्तिय-मेत्तु एहु हंत पर-दार-लोलुय-मणह जमिह सीसु संछिन्नु भह । अवलुत्तउ लिंगु वणि हरह अहु य पर-रमणि-लंभह ॥ सुर-सामिहि वि सरीरि तह नयण-सहसु सजाउ । कुल-छेयण-दहवयणह वि गरुयरु हुयउ विसाउ ॥
[३५३]
जइ व गुरुहु वि हवइ मइ-मोहु पडिकूल-हय-विहि-वसिण इय मुणेवि किं सोइयविण । तह एइण स-पुरिसिण नणु हुयव्वु कुमरिहि पियत्तिण ॥ जं एगत्थ निमित्तियह वयणु हुयउं ता सच्चु । ता जोयहु सु सुपुरिसु - इय भणिवि निउत्तु अमच्चु ॥
३५१. ३. क. The last letters are very minute and hardly legible. After 351 क. ख. प्रथाग्रं १०००.
३५२. ८. कुलछेएण.
१२
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org