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तइयभवि चित्तगइवुत्तंतु
[३३४]
उद्ध- अंकुस मुक्क मायंग
कस- पहय धाविय तुरय लहु पट्टिय भड - निवह रण- कलयलि नहि उच्छलिइ सारव - रंजिय-सुहडि
[३३५ ]
अह परोप्पर मुणिय - वृत्तंत
खयरिंद-सुय चितगइ - कमल नाम निय-दूय-वयणिर्हि । परिसज्जिय- विउल-वल दो वि मिलिय लहु समर - धरणिहिं || ता दोह वि कुमरुत्तिमहं मिलिय सुहड सुहडेहिं । कुंजर करिहिं तुरय एहिं रहिय पुणो रहिएहिं ॥
मुक्क-रासि संचलिय संदण सत्थ- हत्थ रिउ - मुंड-खंडण ॥ कायर-कंपि पयहि । धाय साण-ट्टि ॥
अग्गिम-बलु रिउ-भडिहिं अह दाहिण -करिण धणु भणइ कमल-कुमरह पुरउ चिरु कुमराहम तुह जणिण
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[३३६]
ता खणणि किंचि चित्तगह
दलिय दप्पु दिसि-मुह जुयाविउ । सूरतेय-नंदणु चंडाविउ ॥ फुरिय दप्प-दछु । जय-जय-रवु उग्धुट्टु ॥
[३३७]
किंतु संपद होसु खणमेग
मुववेत्तु कोदंडु करि जय जय रघु संहरउं
अन्नह उज्झिवि पर - रमणि नाससु तुरिउ हयास । किं न निरिक्खसि मंडिया तणा कर्यंतह पास ॥
३३४, ५. क. खंडणु. ६. क. करयलि.
मज्झ समुहु जह तुह खर्णाद्धिन । चिर-परू सह रज्ज - रिद्धिण ॥
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