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[३२२] अह नरिंदिण भणिउ पणमेव
मुणि-नायग मह कहसु फुरिएरिस - विक्कमहं
संति के वि किं जेहिं वसुहहं । दलिउ दप्पु पावा एयहं ||
ता पूरिय दह-दिहि-विवरु दंत-पंति-किरणेहि । भइ मुणीरु संति नय- चलण तिहिं वि भुवणेहिं ॥
नेमिनाहचरिउ
[३२३]
चरण धम्मह धरणि-नाहस्सु
दो नंदण जय-सरण
वारह-दह- सुहड-जुय निहणिय-मोह - नरिंद-वल सिहरि-त्रिवेय-गिरिहिं वसहिं पणयहं सहलिय-आस ॥
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वेरग्गिण कह कह वि गुरु-रिद्धि केवलिहि जिणवर - गणहर - चक्कवइ लद्धडं सग्गपवग्ग-पुर
भुवण-मज्झ विक्खाय-गुण- गण । देस- सव्व-विरइ-त्ति लक्खण || सिय- जस- भरिय-दसास ।
[३२४]
अह नर्रिदिण तेण तेणेव
सो सुमित निय-रज्जि ठाविउ । चलण-जुयलु तसु चैव पाविउ ॥ सेवि घेत्तु चरितु | आहिवच्चु सु-पवित्तु ॥
[३२५]
ता सुमित्तिण विहिय-सक्कारु अणुमन्नि कह कह वि सूरतेय - खयरिंद - नंदणु । आमंतु वेयड्ढ गिरिराय - सिहरि साणंद - परियणु ॥ चक्कंकुर सरि-सूर-सरवर - लक्खण-भुवणेसु । पण मइ पडिय - विणय-विहि जणणि-जणय-चलणे ॥
३२३. ८. क. गिरि वसहि.
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