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३२१]
तइयभवि चित्तगइवुत्तंतु
_[३१८]
पयड-भुय-वल-दलिय-पडिवक्ख तइलोय-कंटय-तिलय तस्स संति सामंत दोण्णिउ । तह दोस गइंदु गुरु वीउ राय-केसरि वि वण्णिउ ॥ ते उण मय-मच्छर-मयण- अविवेय-प्पमुहेहि । जगु वि विडंवहिं परियरिय विसम-चरिय-चरडेहिं ॥
[३१९] तेसि वसगय-जीव-जायम्मि सामित्तणि कित्तिय वि मूढ-हियय तिहुयणु वि तिण-समु । मन्नंति निय-गुरुयणु वि अवगणिति न कुणंति उवसमु । तह सेविस्सहुँ वर विसय करिसहुं वसि भुवणं पि । पूरिस्सहुं निय-कणय-मणि- धण-धन्निहिं वसुहपि ॥
[३२०] इय विचिंतिर करहिं भिच्चत्त देसंतर परियरहिं बिसहिं विसम-रण-रंग वसुहहं । आरोहहिं गिरि-सिहरि तरहिं उयहि अणुसरहिं पावहं ॥ कुणहि अकज्जाई वि न उण अकय सुकय पावंति । फल किंचि वि एमेव चिरु धरणीयलि धावंति ॥
[३२१]
तुह सुयस्स वि मोह-नरवइहि आएसिण पहु-वयण- रुइण मिच्छअभिमाण-मंतिण । पहु-अहिमय-विहि-चउर- चरड-सहिय-सामंत-जुत्तिण ॥ दिण्ण-निओयहं भयह एरिस विहिय अवत्थ । तुह मंतिहिं सामंतहं वि तहिं अक्कमहिं न सत्थ ॥ ३१८. ८. क. जगु वडवहिं. ३१९. २. क. कित्तिइ, ३२१. १. सुयस्सु. ११
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