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३१३]
तइयभवि चित्तगइवुत्तंतु
[३१०]
एत्थ-अंतरि मुणिय-वुत्तंतु सुग्गीवु नराहिवइ पत्तु पुरउ केवलिहि चलणहं । दुदृढय-कम्म-रिउ- हम्ममाण-जय-जंतु-सरणहं ॥ मन्नंतउ अप्पाणु कय- किच्चु मणेण पहिछ । पणमेप्पिणु गुरु-भत्ति-भरु उचियासणि उवविठु ।।
[३११] __ भणइ – मुणिवर कहसु पसिऊण सा तारिस दुच्चरिय नीहरेउ कहिं भद्द पत्तिय । ता केवलि कहइ- नर-नाह नियय-दुक्कय-नियंतिय ।। तुह घर मेल्लिवि नीहरिवि नयरंतरि गच्छंत । वत्थाहरण-सणाह-तणु . पहि चोरिहिं संपत्त ॥
[३१२]
तयणु हक्किवि हरिय-सव्वस्स अवलोइय-सकय-फल छुह-पिवास-परिसुसिय-वयणिय कर-संपुड-पिहिय-पिहिय व्व दूरिहुय-दइय-सयणिय ॥ वहु-मुल्लिण थी-लोलुयह पल्लीवइहि विइण्ण । स-कय-अभद्दय भद्द अह गरुयर-दुह-संकिण्ण ॥
[३१३]
रहु लहे विणु घरह नीहरिवि परिवंचिय पल्लिवइ लोय-दिहि-फुरियावसद्दय । गिरि-मग्गिण नट्ठ दढ- वद्ध-मुट्टि भद्दय अभद्दय ॥ गच्छंती उ चउद्दिसिहिं दविण सविह-पत्तेण। तह सव्वंगु निदड्ढ जह कवलिय पंचत्तेण ॥ ३११. ६. क. नीहरवि. ३१२. ३. क. ख. बुह.
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