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[२९०
नेमिनाहचरिउ
[२९०] एत्थ-अंतरि गहिर-सद्देण निव-काल-निवेयगिण भणिउ - देव दिण-इंदु संपइ । दीवंतरि गमिरु लहु जणहं पुरउ नं एहु पयंपइ ॥ एत्थ न दिउ चित्तगइ- समु महि-भर-धुर-धवलु। तो जोइवि दीवंतरि वि करिसु कह वि एहु जुयलु ॥
[२९१] अहह सुंदरु पढिउ तई भद्द इय जंपिवि नरवरिण दिण्णु दाणु बहु वंदि-पुरिसह । तब्बयणिण स-परियणु चित्तगइ वि सु सुमित्तएण सह ॥ पमुइय-नरवइ-पमुह-जण- कय-वहुविह-पडिवत्ति । मुर-घर-सरिसि विभिन्नि धवलहरि पहुत्तु अड त्ति ॥
[२९२] अह परोप्परु दो वि ते कुमर परिविलसिर-नेह-भर ठंति तत्थ कित्तिय वि वासर । ता पत्तउ कमिण महु- समउ जत्थ उवलद्ध-अवसर ॥ माणिज्जहि पिय-संग-सुह पूनयहिं दुई। पसरहिं मलयानिल बहल पीडिज्जहिं विरहीउ ॥
जो य
[२९३] जच्च-मिगमय-चारु-सिरिखंडवर-कुंकुम-सुरहि-बहु- कुसुम-दविण किज्जंत-छंटणु । वण-विलसिर-कुसुम-महु- लुद्ध-भमर-परिविहिय-रुंटणु॥ मालइ-कुसुमामोय-भर- निहणिय-माणिणि-माणु । ठाणि ठाणि भारहिय-कुल- पयडिय-निय-विण्णाणु ॥ २९२, ५. क. दूईओ; ख. पूइयहिं पूईउ; ८. क. पसरइ. ९. क. विरहीमो.
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