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२८९ ]
जइ न हुंत
निक्कारण कारुणिउ ता एत्तिउ कालु हउं परमज्ज - वि मह नर - भविण जं मेलावर हुयउ तुह
तइयभवि चित्तगइवुत्तंतु
[२८६] एत्थु तुहुं यत्तु
[२८७]
तह महायस तुह समासेण.
आयारिण कहिउ कु उदयंत दिणयरह
तहवि पसाउ करेवि मह साहस स कुलुप्पत्ति | जं सुमंत वि गरुय कह निहणई असुह पवित्ति ॥
ता खणद्विण
गयण- पहिण असरण-सरण्णउ । होंतु अकय-सुकउ विवण्णउ ॥ होयव्बउं सुहएण । सरिसिण नर- रयणेण ॥
नीसे विचित्तगह
[२८८]
तणु स-मुहिण कहिउमसमत्थु
निय वइयरु चित्तगइ. उचिय-हिइ-आयरणदाहिण - नयण - वियास-कय- संकेइण अणुयम्मि | अणुमन्नई इगु खयर मुउ पत्थुय-कह-कहणम्मि ||
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रूव- रिद्धि सयमवि निरिक्खिय । पडणेण न जयहिं सु-सिक्खिय ॥
खयर-राय-कुल-गयण - ससहरु । निरय-चित्तु उवरोह-सुंदरु ॥
[ २८९]
कहइ इयरो वि
खयर- बुमर-वृत्तंतु ले सिण ।
सयल गहिउ गरुण हरिसिंण ॥
अह नरवई - पमुहु जणु भणइय - सयमवि सप्पुरिस अहह परत्थि जयंति ।
अहव महद्दुम पहि- यणह
किं पत्थिया फलंति ॥
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