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________________ २८१] ७१ तइयर्भाव चित्तगइवुत्तंतु [२७८] किं न संपइ पसिय संभासु वियरेसि निय-परियणह कहसि स-दुहु न य जणणि-जणयहं । न य दिहि-पसाउ किह कुणसि पियहं पहु विणय-पणयई ॥ अ-विणउ को विन कुणइ तुह सुहय सुमित्त-कुमार । ता उढिवि लहु सुहि-सयण संभूससु जय-सार ॥ [२७९] एत्थ-अंतरि सूरतेयस्सु खयरिंदह अंगरुहु दुहिय-सरणु वहु-बल-समन्निउ । वच्चंतउ नह-यलिण पत्तु तत्थ वंदियण-वनिउ ॥ मुगहिय-नामु महा-महिमु चित्तगई-अभिहाणु । नियइ समग्गु वि तं नयरु विलसिर-सोय-निहाणु ॥ [२८०] न वि य निमुणइ मंगलुग्गारु न य कत्थवि गेय-झुणि न वि य ललिउ वोल्लंत मिहुणइं । न य मंगल-तूर-रवु न वि य पढिर-वंदियण-वयणई ॥ नवरि पहाविर-पडिखलिर- देवि-निवइ-मंतीहिं । बियइ सुमित्तु तहा-विहु वि उल्लाविरु जुत्तीहि ॥ [२८१] तयणु गयणह अवयरेऊण सहस च्चिय चित्तगइ भणइ पुरउ वसुहाहिरायह । मा नरवर सोउ करि करिसु सज्ज तणु तुज्झ जायह ॥ अह नरवइ वियसिय-वयणु भणइ - पसिउ नर-रयण । जीवावसु एहु कुमरु जह अम्हि वि जियहुँ स-सयण ॥ २८.. ६. क. पविखलिर. २८१. १, फ. गयणहं. Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002609
Book TitleNeminahacariya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1970
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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