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नेमिनाहचरिउ
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ता खणद्धिण नील-नह-दंतु भज्जंत-असेस-तणु पसरमाण-लालाउलाणणु । आगच्छिर-पउर-विस- वेगु दाह-जर-खुहिय-गुरुयणु ॥ मुच्छ-समागम-विहुर-तणु लहु वि णिमीलिय-अच्छु । पडिउ सुमित्त-कुमारु परिसुद्ध-धरायलि हच्छु ।
[२७५] ___अह नराहिवु किं किमेयं ति परिजंपिरु सुय-पुरउ गुरु-दुहत्तु धावंतु पत्तउ । धाहाविरु परियणु वि खलिर-पडिरु दुह-जलण-तत्तउ ।। तत्थागंतु नराहिबइ- उवइडई सवाई। कुणइ तुरंतउ तस्समय- निय-निय-कायव्वाई॥
[२७६]
तयणु तक्खणि मिलिय बहु वेज्ज संपत्त तंतिय-तिलय विज्ज-मंत-सिद्ध वि पहु तय । अह निय-निय-समय-विहि- किरिय सयल कुमरह पउत्तय ॥ किंतु कुमार-सिरोमणिहि तस्सु न को वि विसेसु । जायउ ता नरवइ-पमुहु विलबइ लोउ असेसु ॥
[२७७]
अहह निय-कुल-गयण-हरिणक ससि-निम्मल-गुण-भवण चारु-चरिय सु-वियड्ढ सुन्दर । पिय-भासण गय-गमण हरिण-नयण तरुणियण-मणहर ॥ पढम-वयम्मि वि नर-रयण ववगय-जोव्वण-दोस । गुरुयण-वच्छल मुहि-सयण- हियय-जणिय-संतोस ॥ २७४. २. क, भज्जंतु.
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