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२६५]
तइयभवि चित्तगइवुत्तंतु
[२६२] ___ इय अहं पि हु विविह-गुण-रयणविलसंत-मंजूसिए वि असम-कित्ति-धवलिय-महीए वि । भणियाए वि सयल-कुल- महयरी हिं सह तस्सहीए वि ॥ अ-पवनंति परिणयणु दुहियए रयणवईए। चिउं चिंताउरु सहिउ दइयए (वि) विगय-रईए ॥
[२६३]
अह पयंपिउ ईसि विहसेवि साणंदु नेमित्तिएण नाह होसु मा तुहुं-सचिंतउ । जं होसइ सयमवि हु थोव-दियह-मज्झि वि पवित्तउ ।। सुहय-सिरोमणि भड-तिलउ विवुह-वग्ग-तियसिंदु । कुमरिहि रयणवइहि दइउ हियय-हारि खयरिंदु ॥
[२६४]
सिरि-सुमित्तह निवह भइणीए कालिंग-निवइहि पियह हरिणि-जणिय दुहु तुज्झ नंदणु। निय-विज्जावल-मुइउ कमलु सयल-रिउ-माण-खंडणु ॥ विजिउण गेण्हि वि तब्भइणि अप्पिवि तस्सु निवस्सु । जो करिहइ भुय-वल-दलिय- रिउ-कुल हरिसु अवस्सु ॥
[२६५]
जस्सु पत्तह सिद्ध-आययणि रोमंचिय-तणु-लयह गहिर-रविण थोत्तई भणंतह । आणंदिण पुणु वि पुणु तित्थ-सामि-पडिमउ नमंतहं ॥ साहुक्कार-पुरस्सरइं वर-परिमल-परमाइं। उवरि पडिस्सहि नह-यलहु पणपन्नई कुसुमाई ॥ २६२. ५. सहयरीहिं. ८. चिंतागरु. २६३. ५. क. ख. दियहं. २६१. ५. सयल.
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