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नेमिनाहचरिउ
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अह अणुक्कम-पत्त-तारुण्ण समहीय-आस सकल सयल-तरुण-मण-हरिण-वंधण । निय-रूविण विजिय-रइ- रंभ-महिम मयणाणुसंधण ॥ अ-कुणंती परिणयण-कह अइगामइ दियहाणि । देंती दिट्ठि-पहागयहं तरुणहं मयण-दुहाणि ॥
[२५९] __ अह निरिक्खिवि वाल तह-रूब खयरिंदु पणइणि-जुउ वि वाहरेवि तिहुयण-वियक्खणु । नेमित्तिउ तमु पुरउ भणइ - भद्द किं कु-वि सु-लक्खणु ॥ होसइ सुर-नहयर-तरुण- विदेसिणि-पगईए। विज्जाहरु महि गोयरु व पिययमु रयणवईए ॥
[२६०
जमिह जोव्वण-भरिण उवलद्धसव्वंग-निरुवम-सिरि वि तरुण-रयण-पत्थिज्जमाण वि । सविह-ट्ठिय-सहियणिण बहु-वियप्पु तोरिज्जमाण वि ।। सासिज्जति वि वुइढियहिं अंव-धाइ-पमुहाहिं । रज्जइ कह वि न कुमरि एह मणिण वि विसय-कहाहि ॥
[२६१] अहव दीणिम कुणहिं जायंत वढंत चिंतह खिवहिं तवहिं निच्चु पर-भवणि जंतिय । पिय-चत्तिय देंति दुहु विहुर एति अण-हुंत पुत्तिय ॥ . दोहग्गिणिउ वि विहविय वि असुह-यरिउ जणयाहं । जम्म-दिणे च्चिय नयण-जल तें दिज्जइ धूयाहं ॥ २५८. २, समहीभसिसकल. ९. नयण दुहाणि. २५९. ४. तस्सु तुरउ. ७. क. विद्दे सिण. २६०. ९. मणिण दिविरायकहाहि.
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