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२४९]
तइयभवि चितगइवुत्तंतु
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इय विचित्तर्हि तणय-गय-कहहिं पढमेल्लु वासरु खणु व सह पियाए नरवइ गमावइ । नीसेसहं निय-महिहिं गुत्ति-खित्तु लोगु वि मुयारइ ॥ वित्थारावइ कित्ति-भरु तह मग्गणहं पयाणु । कारावइ नयरी-महिम तह गुरुयण-सम्माणु ॥
[२४७] ___ अह-अणुक्कम किज्जमाणम्मि कायव्य-वित्थरि सयलि छ?-रत्ति-जागरण-पमुहइ । उवउत्त-निउत्त-नर- सुंदरीहिं सुहि-सयण-सुहयइ ॥ पत्तइ एक्कारसमि दिणि जय-जण-जणियाणंदु । चित्तगइ त्ति सुयस्सु वियरेइ नामु खयरिंदु ।।
[२४८]
अह करावइ गरुय-वित्थरिण इयरा वि समग्ग विहि समय-उचिय जय-जंतु-मणहर । आणवइ य पंचविह अंव-धाइ वसुहेक्क-सुंदर ॥ निय-निय-ठाणि विसज्जइ य जणु कय-वहु-सक्कारु । परम-सुहामय-सित्तु सु वि चिहइ खयर-कुमारु ॥
[२४९] सिहरि-कंदरि कप्प-विडवि व्व सिय-पक्खि रयणायरु व गय-विग्ध-संघाउ अइरिण । तणु-वुढिहिं पत्त सह चंद-कुंद-सिय-कित्ति-पसरिण ॥ पत्तावसरु महा-महिण कुमरु कलायरियस्सु । वियरिउ निय-मइ-विजिय-तियसासुर-गुरु-वुद्धिस्सु ॥ २१६. १. विचित्तिहि.
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