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[२२६]
अह अणुक्कम गहिय-वर-सिक्खु
मुणिय-सयल - सत्थत्थ- गोयरु | भमिय- विविह-विस्संभरोयरु ||
निस्संग- चूडा- रयणु परिसीलिय- विविह-तवु अइरेण वि सो राय-रिसि मुणि-मंडलि गुण-जिस्ठु । उ करेविणु सयल-निय- गुरु आएसु विसिन्छु || [२२७] अह पवदिर-चरण- परिणामु
जिय- अंति अणसणु करिचि वत्थु अथिरु भवि संपहारिवि । हियइ पंच- नवकारु सुमरिवि ॥ विसय मुहिहिं रम्मम्मि ।
उ सुरु सोहम्मम्म ॥
आलोएवि दुच्चरिय निरुम-चिर (?) - पंचविह अप्प - चउत्थु वि इंद-समु
ता नमसइ
साडु निय-परियणिण सुस्वसइ भत्ति-भरु लायणिण मुणि- मोहणिहिं
उवर्भुजइ वर विसय-सुह
[२२८] निच्च जिण - विंव
विहिय से सयलम्म महियलि । विहरमाण तित्थयर केवलि ॥ रूविण विजिय-रईहिं । स- हरि सुह-तियसीहिं ॥
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इति श्री श्रीचन्द्रसूरि-कम-कमल-मसल- श्रीहरिभद्रसूरि - विरचित श्रीने मिस्वामि- राजी - मृत्योर्धन-धनवती-वस्तव्यता- रूपस्त्रिदश-भव- द्वितीयः प्रथमो
भवः समाप्तः ॥ इति ।
[ २२६
[२२९] साहु-हिय व लोय-मज्झत्थि
सग्गे व्व सुर- सिहरि-वरि वुह यणि व्व वेयड्ढ़- मंडणि । निवइम्मि व बहु-विजड़ जंबु-दीवि अवजस-विडंडणि ॥ गिरि- सरि-नयरायर - पवर- जिण-मुणि-निवह- पवित्त | वासु समत्थि पसिद्धु अभिहाणिण भरह - क्खित्तु ॥
२२७. ३. वित्थु. ५. ६. The portion between सुमरि and पंचविह is ille 8 ible in क. ख. निरुउसथिर. क. चउत्थ
१२८, १. क. मंबई. At the end of २२८ : प्रथा ५६८.
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