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२३३]
तइयभवि चित्तगइवुत्तंतु
[२३०]
तत्थ निब्भर-झरण-झंकारआऊरिय-धर-विवरु गरुय-गंध-सिंधुर-भयंकरु । परिकीलिर-खर-नहर- हरि-किसोर-सोहंत-कंदरु । सासय-जिणवर-मंदिरिहिं निरुवम-रयणमएहिं । सोहिय-सिहर-सहस्सु परिमंडिउ विडवि-सएहिं ॥
[२३१]
सरय-ससहर-विमल-कलहोयनीसेस-सिल-संचइण हसिय-तरणि-रयणियर-मंडलु । दढ-विज्जा-सहस-बल- खेयर-निवह-निज्जिय-अखंडलु॥ निम्मल-रयणावलि-किरण- हरिय-तिमिर-पब्भारु। भुवणच्चन्भुय-सिरि सयल- गिरि विस्संभर-सारु ।
[२३२]
हरिस-निब्भर-हियय-कोलंत. तियसासुर-खयर-नर- नाह-मिहुण-निवहिण विहसिउ । वहु-चारण-समण-पय- पउम-मुहय-सिहरिहिं पसंसिउ । नाणाविह-नहयर-नयर- मंदिर-विहव-समिद्ध । अत्थि समत्थ-गिरिंदु गिरि-वेयड्ढो त्ति पसिद्ध ।
[२३३]
तत्थ सुरगिरि-तुंग-पायारदुग्गम्मु पायाल-तल- गहिर-परिह-रिउ-कुल-भयंकरु । हिम सिहरि-विसाल-गिह- पंति-पत्त-सिय-कित्ति-वित्थरु ॥ जय-लच्छिहि संकेय-घरु मण-निव्वुइहि निवासु । निरुवम-रयणहं रयण-निहि मुर-नयरहि संकासु ॥ २३२. ५. क. सिहरिहि.
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