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२२५]
पढमभवि धणवृत्तंतु
[२२२] जह अ-सारउ एहु संसारु भंडारु सयलहं दुहहं एत्थु जुत्तु न पमाउ विउसहं । अइ-दुल्लह माणुसिय- जम्म-लद्धि पुणु अकय-मुकयई ॥ पर-भव-साहणु धुवु पवरु विसय विवागिण दु । पिय-संजोगु वियोग-फलु सयण स-कज्जिण मिठ ॥
[२२३] चलिरु परियणु अथिरु तारुण्णु परिगमिर असेस सिरि जीवियव्वु करि-कण्ण-चंचल । अणुरत्तु वि तरुणि-यणु जणिय-दुक्ख-पब्भार-भिभलु ॥ भिच्चु न सामिहि अप्पणउ सामि न भिच्चह होइ । ता विहल च्चिय इह जणिण अप्पु नडिज्जइ लोइ ॥
[२२४] इय सुणेविणु गुरुहु वयणाई हर-हास-कुंदुज्जलई धण-नरिंदु संवेय-भाविउ । गुरु-सासणु सिरि धरिवि सुउ जयंतु निय-रज्जि ठाविउ । भव-विरइहिं सिव-लालसिहि गुरु-यण-पय-भत्तेहिं । परियरिउ धणवइहि तह धणएव-धणयत्तेहिं ॥
[२२५] ___ अरिह-विवहं करिवि सक्कारु मणि आण गुरुयण-तणिय धरिवि जिणह सासणु पहा विवि । अणुजाणाविवि सयलु सयणु स-मणु सिव-मग्गि ठाविवि ॥ गंतु वसुंधर-मुणिवरहं पुरउ गरुय-रिद्धीए । गेण्हइ दुहिय-सरणु चरणु उक्कंठिउ सिद्धीए ॥ २२२. ६. भरभव. २२४. ६. क. लालिसिहि.
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