________________
५६
नेमिनाहचरिउ
[२१८]
काल- जोगिण उचिय पंच - विह
धणवर्हि सह विसय-मुह संजायउ अंगरुहु करिवि महूसवु वियरियउं कम- पाविय तणु-बुढि अह
उज्जाण - वालिण नरिण विण्णत्तउ गुरु- हरिस
[२१९]
अन्न- वासरि घणु-महीनाहु
भुंजिरस्स सु-स्सिविण-सइउ । धण- निवस्सु अह वहु-विभूइउ ॥ नामु सुयस्सु जयतु | चिह्न महिहिं ललंतु ॥
जह जो देविण संधुणिउ आसि पुच्चि गुण-भूरि । सो एहु अज्जुज्जाण-वणि पत्तु वसुंधर - सूरि ॥
Jain Education International 2010_05
उत्तिमंग-कय-पाणि-: - पुडइण
I
उल्लसंत- सव्वंग - पुलइण ॥
[२२०]
ता नराहिवु करिवि सक्कारु
सिव-संगम - वद्ध-मणि Tags नर-रयणि तेण वसुंधर- मुणिवरिण जलहर - गंभीरिण सरिण
उज्जाण वालय- नरह
संचलिउ सह नियय आलोए य पणामु करि पंच- विहाहिगमेण । गुरु[] - अवग्गहि पविसरइ समय-विहिण परमेण ||
विहिय- चारु-सिंगारु वेगिण ।
परियरेण गुरु-भत्ति - चंगिण ||
[२२१]
तयणु भत्तिण कय-पणामम्मि
विहिय-सयल कायव्व- वित्थरि । फुरिय- हरिस- सवंग-सुंदरि ॥ सिव-पुर-पह संवद्ध | धम्म ककह पारद्ध ॥
२१८. ३. क. सूइय ८. कम्म.
२१९. ३. पुडएण. ६. क. ख. पुल एण
२२०. Verse lines 8 and 9 are missing in क.
For Private & Personal Use Only
[ २१८
www.jainelibrary.org