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पढमभवि धणवुत्तंतु
[२१४] धण-नरिंदु वि विजिय-पडिवक्खु निय-कित्ति-धवलिय-भुवणु कुणइ जिणहं सकारु भत्तिण । कारावइ जिण-भवण जिणह विंव ठावइ स-सत्तिण ॥ रह-जत्ताउ पयासवइ पयडावइ दत्तीउ । वारावइ जीवहं मरणु सोहावइ गोत्तीउ ॥
[२१५] कुणइ गुरु-यणि परम-सम्माणु सम-धम्म पुण उद्धरइ हरइ दुरिउ पणमंत-जंतुहुँ । आराहइ पय-पउम निच्च-कालु सिव-मग्ग-गंतुहं ॥ न मुयइ कहमवि निय-मणह ससि-निम्मलउ विवेउ । अइ-दुल्लंभउ मुणिवि निरु जिणवर-धम्मु दु-भेउ ।।
[२१६] तह विवज्जइ जीव-संहारु न अलीउ दढमुल्लवइ चयइ ईयर-विहवु वि पयत्तिण । पर-रमणि न आलवइ न वहु-धणिण मुब्भइ धरित्तिण ।। दिसि-वय-गहणि समुज्जमइ जयइ भोग-उपभोगि । न वि य अणत्थिण ववहरइ रहइ समिइ-उवओगि ॥
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दहु पयट्टइ भोग-उवभोगवय-विसइ पोसह-वइ वि चयइ विग्घु गुरु-संविभागि वि । परिउज्झइ मण-पसरु मोहराय-मुहि दोसि रागि वि ।। अहव किमन्निण वित्थरिण सम्वत्थ वि दढ-सत्त । वइ विक्कमधण-तणउ निरुवम मुणि-सम-चित्तु ।। २१५. ३. क. पणमन्न. २१७. ८. क. वटइ..ख. चट्टइ.
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