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२०९]
पढमभवि धणवुत्तंतु
[२०६] __ अज्ज उण निय-मुरुहुं फ्य-पउमकय-सेवु समण-क्किरिय- करण-निरउ विहरंतु सत्थिण । सह पत्तउ इह तयणु सत्थ-जणिण तक्करिहि घस्थिण ॥ इयरेहिं वि जीविउ-मणि हिं नासंतिहि समणेहि । पत्त मुच्छु तरु-तलि पडिउ हउँ विवसिहि करणेहिं ।।
[२०७]
इयरु पुणु जो हुयउ वुत्तंतु संजाय-तारिस-दसह मज्झ तत्थ न समत्थि सुमरणु । तई पुण हउँ पडि यरिवि विहिउ पत्त-पुणरुत्त-चेयणु ॥ इह तुह लेसिण निय-चरिउ सयलु वि कहिउ कुमार । अह वियसिय-मुहु धणकुमरु जंपइ स-समय-सार ।।
[२०८] पसिय साहसु पुणु वि मुणिचंद निय-चरिउ गहिरक्खरहिं जमिह कहिउ तई मज्झ लेसिण । तं जीवह इयरहं वि अह वहुयउं एहु तुह विसेसिण ।। अह जंपइ मुणिचंद-मुणि पाएण एहु सव्वेसि । नायव्वउं जीवहं चरिउ भवियह नउ अन्नेसि ॥
[२०९] अह विसेसिण फुरिय-गुरु-हरिसरोमंच-राइण धणिण भणिउ – भयवमिह मोह-निवइहि । अइ-भीसण-परिजणहं जणिय-भुवण-जण-गरुय-अरइहिं । मिच्छदिद्रि-अमच्चह वि तई जि जणिउ विक्खोह । अन्नु कु तई जिम्ब तिहुयणि वि एय-विसइ दक्खो हु । २०७. २. क. दसह. २०८. १ क, पुण. ४. क. इयरह. ७. क. सव्वे वि.
२०९. ४. क. The letter corresponding to ज in परिजणह is blurred; ज. परिंदाणह. ८. क. तिहुयण.
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