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तयणु नर- सुर-असुर-नरएसु
नेमिनाहचरिउ
पुणरुत्तु उत्तावियउ
तह कहमवि जह न इह अन्न- - दिम्मि उ भणिउ हउं निय-दइयहं साणंदु | पहु तुह दंसहुं चरण-निवु एम्यहं सुह-तरु-कंदु ||
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किंतु दीसइ एह संमत्त
सचिवंदि अणुकूल करि अह वंतर - रिङ- निविहिं आहारिय-पुव्वेहिं पुणु
अंतर-मित्तिहिं चरण-निवु उवल भेइ सुहेहिं ॥
तेहिं तेहिं दुसहेहिं दुक्खिहिं । सक्कु कय-वयण- लक्खिहिं ||
कहि
सेन्नम्म नीसेस - सुह
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खंति - कवइण सु-विवेय-कुंजरि चडिवि करि मदव धणु धरिवि तव - संजम - अवितह-वयगजीव-विरय-पासिण सवलु मोह- निवइ वंधेवि ॥
२०२. २. क. पुणुरुत्त. २०३. क. मित्तिहि. २०४. ८. विरिय.
दलिय-दपि मिच्छत्त- मंतिहि । सव्वओ विपरिगलिय- कंति हि ॥ विमलागम - मुर्हि |
[२०४]
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तुरिउ पविससु चरण- रायस्स
अह दइयह वयणु एहु धम्मघोस सूरिहि पुरउ चरण-निवह स परियणह वि
करिवि तणु-रक्ख
सील-हारु हिययम्मि परिहिषि । मुत्ति अज्जव वि चिंध उभिवि ॥ सोय-वाण संधेवि ।
फल-समिद्धि-वर कप्प- पायवि ॥ नियय-चित्ति निरु संपहारिवि । सयल तह त्ति करेवि । ठिउ मणि आण धरेवि ||
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