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२०१]
[१९८]
तहं अणंतहं मज्जि अहमासि कुलुपुत्तु संसारियउ जीवु विहिय-मोह-बल मंडणु । भवियव्यय नाम निय- पियह अकय-दढ-आण-खंडणु॥ मिच्छद्दिष्ठि-अमच्च अण्णाण-मित्त-संजुत्तु । ठिउ पुग्गल-परियट्ट-अणवगय-अंत-सु-दुहत्तु ॥
[१९९] अन्न वासरि विहि-निओएण भवियव्य-नाम-प्पियह नियहं भणिउ – हउं सुहय अज्ज वि । इह कित्तिउ कालु तई संठिएण सहियव्य लज्ज वि ॥ ता मई सहिउ वि नीहरसु जह तइलोय-गयाइं । तुह दंसेमि अणालसिण हउं सयलई ठाणाई ॥
[२००] तयणु दइयह तणउ आएसु मन्नंतु अणुगाहु व स-पहु कम्म-परिणाम-पेल्लिउ । निय-भारिय-परियरिउ निरु तुरंतु तसु पुरह चल्लिउ ॥ अह लहु संववहार-पुरि थूर-अणंत-दुमेसु । स-पिय-निओइण ठिउ सुइरु बहुविह-दुह-विसमेसु ॥
[२०१] पुहइ-पाणिय-जलण-पवणाण नयरेसु संखाइयउ कालु थक्कु पत्तेउ दुत्थिउ। ता वि-ति-चउरिदियहं पाडएसु दुह-सय-कयत्थिउ ॥ तत्तो जल-थल-नहयरिसु पंचिंदिय-तिरिएसु । हउं संखेज्जउ कालु पिहु पिहु ठिउ दुह-विहुरेसु ॥ १९८. १. क. नासि. २००. ७. क दूर (१). २.१. ५. क. कय स्थिओ.
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