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पढमभवि धणवुत्तंतु
[१९०]
इय विचितिरु हरिस-पन्भारपप्फुल्ल-लोयण-जुयल उत्तरेवि करि-कलह-खंधह । पिय-बंधव-सुहि-सहिउ थुणइ चलण धणु मु मुणिचंदह ॥ तयणु करिवि मुणि सज्ज-तणु सिसिरिहिं उवयारेहिं । अन्न-पाण जहुचिय-विहिण पडिलाहइ स-करेहिं ॥
[१९१] ___ अह महा-मुणि गहिय-आहारु सिद्धंत-जंपिय विहिहि करिवि होउ एगति भोयणु । सुह-आसउ विमल-गुण- रयण-रासि पणमंत-भवि-यणु ॥ समुचिय-आसणि उवविसिवि धम्म-रयणु कुमरस्सु । साहइ परियण-कलियह वि विणय-नमंत-सिरस्सु ॥
[१९२]
तयणु विक्कमधण-महीनाहकुल-गयण-सारय-रयणि- रमणु भणइ सिर-रइय-करयलु। मह साहसु पसिय तुहं गरिम-थिरिम-जिय-सिहरि-महियलु ॥ पत्तउ किह इह मुणि-वसह एरिस विसम अवत्थ । अह मुणिचंदु समुल्लवइ मह कह एह महत्थ ॥
[१९३]
तह वि निसुणसु मज्झ वुत्तंतु एगग्गु निय-मणु करिवि भण्णमाणु वित्थरिण रहिउ वि । विक्कमधण-अंगरुह भावि भद्द स-परियण-सहिउ वि ।। आसि सुरासुर-निव-निवह पणमिय-पय-अरविंदु । सिरि-भुवणोयर-पुरि गरुय- विक्कमु मोह-नरिंदु ॥
१९३. ३. क. भण्णुमाणु; ख. भिण्णपाणु, ४ क. अंगरुहु; क. साहिओ वि,
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