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पढमभवि धणवुत्ततु
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[१८३]
तयणु मंगल-तूर-आरावआऊरिय-गयण-यलु चलिउ अग्ग-मग्गम्मि स-हरिसु । तक्काल-समुल्लसिय- कित्ति-भरिय-भुवणुयरु सु-पुरिसु ॥ गच्छंतो य अणुक्कमिण तिण लोइण संजुत्तु । एगयरस्सु महा-गिरिहि सविह-देसि संपत्तु ॥
[१८४]
तयणु गंडय-तुरय-सदूलहरि-पोय-सिंधुर-सरह- अहि-वराह-सारंग-खग्गिहिं । भल्लुंकिय-वणमहिस- वरहि-विरुय-सिव-चमरि-वग्गिहि ॥ लहु-विक्खोहिय-पहिय-जणि निच्च-जलंत-हुयासि । पविसइ अडविहि मज्झ-पहि एगह सरिहि सयासि ॥
_[१८५]
ता खणद्धिण तत्थ कत्तो वि हर-गवल-सामल-पहिण गहिय-विविह-धणु-उवल-खंडिण । वज्जाविय-सिंगिएण पउर-भिल्ल-वग्गिण पयंडिण ॥ आगंतण समुल्लविउ अरि अरि मेल्लिवि सत्थ । अम्ह समप्पह धण- कणय-वाहण-पमुह पयस्थ ॥
_ [१८६]
अह परोप्परु लग्गु संगामु अन्नोन्न-गुरु-मच्छरहं तत्थ तेसि दोण्हं पि पक्खहं । ता भिल्लिहिं तक्खणिण दलिउ दप्पु वणि-सुहड-लक्खहं ॥ तयणु गहिय सत्थाह-सिरि सयल सयंवर-पत्त । नासिउ सथिल्लय-जण वि कह वि स ठाणि पहुत्त । १८५. १. क. वि missing.
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