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१७८]
पढमभवि धणयुत्तंतु
[१७५]
पत्तु उढिवि नियय-भवणम्मि अन्नत्थ सु मुणीसरु वि गयउ समण-परियण-समन्निउ । धणकुमरु स-धणवइ वि सु-गुरु-सिक्ख अमयं ति मन्निउ ॥ जायउ जिण-सासण-कहिय-धम्मि सुभद्दय-भावु । वट्टेइ य सव्वत्थ निरु पयडिय-सरल-सहावु ॥
[१७६] इओ य
सरिय-सरवर-रम्म-उज्जाणि पायाल-गहीर-उरु- फरिह-वलइ गुरु-साल-मुन्दरि । जिण-मंदिर-सिहर-गय- कणय-कलस-किरणोलि-तम-हरि । असरिस-पुर-सिरि-वित्थरिण तियसासुर-विसरस्सु। हियइ वसंति वसंतपुरि सुरपुर-सरिसि अवस्सु ॥
[१७७]
विविह-नरवर-सहहं विक्खाउ पिय-धम्महं सिरि-तिलउ दाण-विजिय-मय-मत्त-कुंजरु । विउलासउ विउल-सिरि विउल-कित्ति-धवलिय-दियंतरु ॥ पणय-सरण्णउ सुहि-सुहउ पडिवन्नय-निम्बाहु । आसि पसिद्धउ नामिण वि समुदवालु सत्याहु ॥
[१७८]
अन्न-वासरि विहिय-उच्छाहु निय परियण-परियरिउ सत्यवाहु स-निउत्त-पुरिसिहि । घोसावइ सयल-पुरि पडिगिहम्मि जह - थोव-दिवसिहि ॥ सिरि-कंचणपुरि जाइसइ समुदवालु सत्थाहु । वहु-संवल-करि-तुरय-रह- मुहड-विहिय-संवाहु ।।
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