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१७०]
पढमबि धणवुत्तंतु
[१६७] इय समासिण मई समक्खाउ नरनाह-अंगुब्भविय तुज्झ नियय-वेरग्ग-कारणु । जं निमुणिवि भविय-जण चरहिं चरणु भव-भय-निवारणु ॥ तयणु वसुंधर-गुरु-चरिउ सुणिवि फुरिय-रोमंचु । विक्कमधण-निव-अंगरुहु भणइ भणिइ-विहि-चंचु ॥
[१६८]
अहह मुणिवर चारु तुह चरिउ वेरग्गि तेत्तिल्लिए वि जेण चइय भव-भावि सुह-सय। जं इयरि वि सुणहिं एह नउ कुणंति एरिसय अइसय ॥ इय जीविउ तुद्द मुकय-फलु तएं जि पवित्तिउ लोउ । ता मुणिवर तुह पय-पउम- सरणु जयस्सु वि होउ ।
[१६९]
एत्थ-अंतरि सुणिय-वुत्तंतु गुरु-हरिस-वियसिय-वयणु गहिय-सयल-निय-सार-परियणु । विक्कमधण-धरणि-पहु गुरुहु पुरउ संपत्तु तक्खणु ॥ अह पणमिवि गुरु पय-पउम उचियासणि उवविठ्ठ। निसुणिवि देसण गुरु-तणिय अवसरि भणइ पहिछु ॥ .
[१७०]
कहसु मुणिवर मज्झ पसिऊण धणकुमरि गम्भागयइ दिछु सुमिणि धारिणिहिं देविहिं । सहयार-तरु कुसुम-फल- भार-नमिरु कय-सेवु देविहि ॥ नवमिय-चारारोवियउ राय-सुएहि कय-सोहु । जं तसु को अत्थु ति अह मुणि-पुंगवु गय-मोहु ॥ १६८. ३. सयल. ६. क. फल. १६९. ५. क. पुरओ.
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