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१६२]
पढमभवि धणवुत्तंतु
[१५९]
सीह-तियसु वि सुइरु अणुह विवि सोहम्म-समुभविय- सुह-सयाई तह तियस-सत्तिण । आराहिवि सयल जिण निच्च विहरमाण वि य भत्तिण ॥ तत्तो चविवि ठिइ-क्खएण गयउर-नयरि-निवस्सु । पायड-गरुय-परक्कमह सिरि-मुरिंद-नामस्सु ॥
[१६०]
सरय-ससहर-सील-सिंगारसव्वंग-सिंगारियह विमल-कित्ति-धवलिय-दियंतह । गय-गमणिहि ससि-मुहिहि मयणकलिय-नामह कलत्तह ॥ निरुवम-सिविणुवसूइयउ सु-ललिय-चरणु सु-पक्खु । जायउ नंदण-रयणु कल-हंस-समाणु सु-दक्खु ॥
[१६१] __एत्तिअवसरि तस्सु नीसेसजण-जणिय-गरुयच्छरिउ सयल-मंति-सामंत मेलिवि । चारय-घर-नियलियह जणह दुक्ख-लक्खाइं वियलिवि ॥ स-जणय-जणणिहिं वहु-महिम- पुव्वु वसुंधर-नामु । दिण्णु तयणु अइरिण हुयउ कुमरु सु गुण-मणि-धामु ॥
[१६२] अह वसुंधर-कुमरु संपन्नतारुण्णु नीसेस-सुहि- सयण-जणिय-आणंद-सुंदरु । अणुगच्छिर-करि-तुरय- रह-पयाइ-चउरंग-उल-भरु ॥ गच्छंतउ उजाण-वणि मुणि जुयलिय पेक्खेवि । जाइ-स्सरणिण सरइ निय- पुव्व-जम्म-लक्खे वि ।।
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