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नेमिनाहचरिउ
[१५५] अह विउज्झिवि स-घरु घर-सारु सुर-सिहरि-समाण-मणु सीहु सीहु इव गरुय-विक्कमु । थी-चरिउविग्ग-मणु अणुसरेवि पुव्वय-नर-क्कमु ॥ सिरि-सुंदर-मुणिवर-पुरउ झत्ति गहित्त चरितु । सुर-मंदिरि सूचरिय-चरणु जायउ तियमु पवित्तु ॥
[१५६] ___ अह वसंतु वि थोव दियहे हिं परिझीण-असेस-धणु दुदृ-महिल-वेलविय-जीविउ । कह कहमवि इह मणुय- लोइ पंच-दियहाणि संठिउ ॥ अवगय-वुत्तंतिण जणिण बहुविहु हीलिज़्जंतु । अ-लहंतउ अग्गि विथ वणि सयणहं दुक्खई देंतु ।
[१५७]
अन्न-वासरि पुरह नीहरिवि गच्छंतउ तविय-मणु मिलिउ वाल-तवसियह एगह । अह निमुणिवि धम्म-कह तस्सु सम्मु अमुणिय-विवेगह ॥ तावस-दिक्ख पवजिउण कय-तक्कहियायारु । जाइवि जोइसिइ सु उचिउ भुंजइ सुह-पन्भारु ॥
[१५८]
अह भमेविणु दुह-सहस्संमि संसार-सायरि सुइरु तारिसेण निय-कम्म-जोगिण । अलि-हर-गल-नील-तणु- कंति दूर-विहरिउ विवेगिण ॥ बहु-विह-जिय-सय-संहरण- परिविष्फारिय-दप्पु । जाउ वसंतु इहेव वणि गुरु दिट्ठीविस-सप्पु ॥ ११६. १. क. धरुसारु. १५६. ३. क. वेलविउ. १५७. ६. पवज्जिहवि. १५८. ६. बहुविहि. ९. क. भरु.
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