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१५४]
पढमभवि धणषुत्तंतु
_[१५१]
जेह-भाइण तुज्झ सव्वस्सु पच्छन्नु लूडिवि लयउं तेण कित्ति वित्थरिय तसु इह । तुह वियरिय-धण-लवह पेक्ख फुरइ अवकित्ति इह किह ॥ धणवंतहं गउरवु हवइ धवलइ कित्ति दसास । रित्त वि वाहिणि जिंव इयर विहलउं भमहिं हयास ।।
[१५२] अह स-कम्मिण झीण-णिय-विहवु हय दइय-भासिय-वसिण फुरिय-रोसु पसरंत-मच्छरु । अविवेइय-कज्ज-करु गरुय-दप्प-दुदंत-खंधरु ॥ रहि जेट्टह भायह पुरउ भणइ रोस-रत्तच्छु । मज्झ वि वियरिवि किंपि धणु परम-सुहिण तुहूं अच्छु ॥
[१५३] __मरइ धन्नह तणिय सद्धाह स-घरे वि दीणाणणउ एक्कु एक्कु खायइ पिएइ य । ता संतह जुत्तु इहु भाइ कह वि किं कहसु भाइय ॥ इय भणिरेण य दाहिणिण करिण गहिय असिधेणु । जाव वसंतिण ता भणिउ सीहिण - भाय म रेण ॥
[१५४] खिवहि मत्थइ जणणि-जणया वंसस्सु अप्पच्चए वि दुट्ठ महिल-वयणिण विडंविउ । मह दिहिहि अवसरसु घेत्तु घरु वि विहविण करंविउ ।। हउँ पुणु जाइसु तहं कहं वि जांहहं पुणु न वलेसु । एहु घरु एहु धणु एहु सयणु अच्छइ तुहूं जि भलेसु ॥ १५१. २. लूविवि. १५२. ८. विवरिवि. क. किंपि missing. १५३. ५. तो. एहु. १५४. क. पुण; कहवि.
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